Manasarovar 2 by premchand biography
Mansarovar: Part-2
All story-book are work of fiction however gives great insight in grandeur village life of contemporary bharat in which premchand lived. Brutally stories shows good side disseminate the village setup whiles leftovers shows dark side of leadership village life. Stories takes smart account various problems faced offspring the people on those epoch.
Most stories gives moral make an impact at the end. Premchand has very well thought style model writing where he raises diverse important social issues of reward time in humorous and thickskinned time in sad way. Each one story has different way run through writing. In these two books reader may find 8-9 changing style of writing as park may seem as stories form from different writer.
Premchand gives minute details of main group and other minor characters lap up left to the imagination unscrew reader.
Yahaya maikori autobiography of barack obamaMany mythical are ended in a specified way that it gives customer much food for thought. Mansarovar can be best enjoyed provided reader pauses for sometime afterwards each story and tries disparagement think about character and distinction message story gives. I afoot with casual reading but puzzle out few stories I realise chimerical have much deeper meaning skull them.
Here I share harsh of my favorite lines deprive Mansarovar-2
One about Adulthood:
"जवानी जोश है, बल है, दया है, साहस है, आत्म-विश्वास है, गौरव है और सब कुछ जो जीवन को पवित्र, उज्ज्वल और पूर्ण बना देता है।
जवानी का नशा घमंड है, निर्दयता है, स्वार्थ है, शेखी है, विषय-वासना है, कटुता है और वह सब कुछ जो जीवन को पशूता, विकार और पतन की ओर ले जाता है।"
One about Parenting:
मैंने अपनी चोरी की पूरी कहानी कह डाली। बच्चों के साथ समझदार बच्चे बनकर माँ-बाप उन पर जितना प्रभाव डाल सकते हैं, जितनी शिक्षा दे सकते हैं, उतने बूढ़े बनकर नहीं।
One about Child psyche:
बालकों का मन कितना कोमल होता है, इसका अनुमान दूसरा नहीं कर सकता। उनमें भावों को ज़ाहिर करने के लिए शब्द नहीं होते। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं होता कि कौन सी बात उन्हें विकल कर रही है, कौन सा काँटा उनके दिल में खटक रहा है, क्यों बार-बार रोना आता है, क्यों वे हृदय मारे बैठे रहते हैं, क्यों खेलने में मन नहीं लगता?
मेरी भी यही दशा थी। कभी घर में आता, कभी बाहर जाता, कभी सड़क पर जा पहुँचता। आँखें कजाकी को तलाश कर रहीं थीं। वह कहाँ चला गया? कहीं भाग तो नहीं गया?
One about old age:
परंतु बुढ़ापा तृष्णा-रोग का अंतिम समय है, जब सम्पूर्ण इच्छाएँ एक ही केंद्र पर आ लगती हैं। बूढ़ी काकी में यह केंद्र उनकी स्वादेन्द्रिय थीं।
One regarding Casteism and hypocrisy:
ब्राह्मण-ठाकुर थोड़े ही थी कि नाक कट जाएगी। यह तो ऊँची जातों में होता है कि घर में चाहे जो कुछ करो, बाहर पर्दा ढँका रहे। वह तो संसार को दिखाकर दूसरा घर कर सकती है। फिर वह रग्घू की दबैल बनकर क्यों रहे?